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तेरे दर कामंगता हु मुझे मेरी तलब से अता कर तेरे इश

तेरे दर कामंगता हु मुझे मेरी तलब से अता कर
तेरे इश्क में तड़पता रहू मुझे वो गम अता कर
तेरा नाम लू में जब जब दिल  रोए ये तब तब पढू तेरे नाम की तस्बीह मुझे 
ऐसा विर्द अता कर
सब कुछ छीन के दुनिया बोली बचा क्या तेरा ,मेरे मुर्शीद इनको दिखा सकूं मुझे अपना लकब अता कर
बेघर हुआ हू में उजड़ा मेरा चमन हैं
तेरे दर पे सदा रहू में ऐसी गुलामी अता कर
होके फना जो पहुचु या खुदा रोज ऐ महशर,,है दुआ इतनी उस रोज तेरा दस्त ऐ करम अता कर
रुकती है ज़बान मेरी  मुर्शीद यकिन तुम पे है कामिल,,जब जाऊ लहद को,,तो रुसवा करना हो से तो दीदार अपना अता कर
रह लूंगा कब्र में ,,में हस्र के रोज तक
देखू वहा रोज तुझको ,मुझे ऐसी निशानी अता कर
हू फूल तेरे चमन का ऐ मेरे मुर्शीद 
हश्र तक  महकु मुझे ऐसी खुसबू अता कर
सब कुछ दिया तूने लेकिन एक आरजू है 
फिर मिले जो जिंदगी।तो साथ अपना अता कर

©Sufi Az
  मेरे मुर्शीद तेरा करम अता कर
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Sufi Az

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मेरे मुर्शीद तेरा करम अता कर #शायरी

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