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बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो? जो ख़्वाब में

बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो?
जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो?
दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी,
इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो?


इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की,
उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो? 
आज समझाना पड़ेगा इस नादान-ए-दिल को ख़्वाब और हकीकत में अंतर,
गर हर ख़्वाब हकीकत हो जाए तो हज़ारों आशिक़ बरबाद कहाँ से हो?


बहुत मासूम है ये दिल जो आज भी मुंतजिर है उनके हसरत-ए-दीदार को,
जो आसानी से दीदार हो जाए तो ईनायत-ए-यार कहाँ से हो? 
लिखे हैं उनकी यादों में ख़त कई सारे,
जो हर्फ़-दर-हर्फ़ वो पढ़ ले तो इंतज़ार-ए-इज़हार कहाँ से हो?


शायद उन्हें पसंद नहीं हमारा ये मुसलसल उन्हें याद करना,
जो नाम ना आए लबों पर उनका तो हमारी सहर-ए-शुरुवात कहाँ से हो?
तुम्हीं पर शुरू, तुम्हीं पर बीते ये दिन हर दफा,
जो मिल जाए साथ आसानी से तुम्हारा, तो हमें नसीब दर्द-ए-हयात कहाँ से हो?

-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"






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©दीक्षा गुणवंत बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो?
जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो?
दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी,
इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो?


इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की,
उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो?
बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो?
जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो?
दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी,
इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो?


इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की,
उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो? 
आज समझाना पड़ेगा इस नादान-ए-दिल को ख़्वाब और हकीकत में अंतर,
गर हर ख़्वाब हकीकत हो जाए तो हज़ारों आशिक़ बरबाद कहाँ से हो?


बहुत मासूम है ये दिल जो आज भी मुंतजिर है उनके हसरत-ए-दीदार को,
जो आसानी से दीदार हो जाए तो ईनायत-ए-यार कहाँ से हो? 
लिखे हैं उनकी यादों में ख़त कई सारे,
जो हर्फ़-दर-हर्फ़ वो पढ़ ले तो इंतज़ार-ए-इज़हार कहाँ से हो?


शायद उन्हें पसंद नहीं हमारा ये मुसलसल उन्हें याद करना,
जो नाम ना आए लबों पर उनका तो हमारी सहर-ए-शुरुवात कहाँ से हो?
तुम्हीं पर शुरू, तुम्हीं पर बीते ये दिन हर दफा,
जो मिल जाए साथ आसानी से तुम्हारा, तो हमें नसीब दर्द-ए-हयात कहाँ से हो?

-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"






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©दीक्षा गुणवंत बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो?
जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो?
दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी,
इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो?


इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की,
उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो?

बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो? जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो? दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी, इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो? इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की, उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो?