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दीक्षा गुणवंत

लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

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दीक्षा गुणवंत

हां मैं ठीक हूं।
शायद रातें लंबी हो गई हैं,
तो ज्यादा देर जाग लिया करती हूं।
कुछ करने को खास है नहीं,
तो कुछ अनसुलझी बातें खुद में सुलझा लिया करती हूं।।


हां मैं ठीक हूं।
सर्द हवाओं का मौसम है आजकल,
ये ठंडी हवाएं थोड़ा चुभती है सांस लेने में।
कुछ देर घबरा कर,
आंख बंद कर आहें भर लिया करती हूं।।


हां मैं ठीक हूं।
दिन तो कट जाता है लोगों के बीच में आराम से,
शाम को काम के बीच खुद को व्यस्त कर लेती हूं।
किसी को खास कहने को यूं तो कुछ है नहीं,
पर कभी खुद को खुद से सारे आम कर देती हूं।।


हां मैं ठीक हूं।
चेहरे पर मुस्कान, आंखों में उम्मीद,
सच है या झूठ कुछ कह नहीं सकते।
सब पूछ लेते है कैसी हो? सब ठीक तो है ना?
मुस्कुरा कर, सर हिला कर, मैं ठीक हूं कह दिया करती हूं।।


हां मैं ठीक हूं।
हां बाकी ये सब छोड़ो, मैं तो ठीक ही हूं।।

-लफज-ए-आशना "पहाड़ी"













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दीक्षा गुणवंत

मैं उसको इस कदर आंख भर के देखूं,
वो जाए दूर फिर भी आह भर के देखूं।
एक इंसान ने यूं ही इस कदर पा लिया उसे,
मैं उसे खुद के किस ख्वाब में देखूं?

चंद लम्हे बिताए उसके साथ में,
पर सपने हजार मैं देखूं।
साथ में होकर भी रास्ते अलग से हैं हमारे,
खुद अकेले चलकर उसे किसी और के साथ मैं देखूं।।

कुछ कह कर भी किसी के एहसास-ए-मोहब्बत से 
वाकिफ होने से महरूम है ये दुनिया।
यूं तो बिन कहे, बिन सुने समझ लेते हैं एक दूजे को,
उसकी आंखों में खुद के लिए प्यार बेशुमार मैं देखूं।।

यूं बिखरी जुल्फें, यूं बदहवास सी हालत, यूं आंखों के दरमियां घेरे काले काले,
उसे पसंद हूं मैं इन खामियों के साथ।
वो कहे मेहताब का नूर मुझे,
उसकी नजरों से आईने में खुद का दीदार हजार बार मैं देखूं।।

वो मेला, वो झूले, वो रास्ता तेरे साथ में,
याद है वो आखरी दिन मेरा हाथ तेरे हाथ में।
वो बिंदी, वो लाली, फिर भी कुछ कमी सी थी श्रृंगार में,
वो तेरी पसंद के झुमके पहन खुद को बार-बार मैं देखूं।।

मोहज़्ज़ब(सभ्य) मोहब्बत और ये बेइंतेहा चाहत हमारे दरमियां,
एक पायल उसने अपने हाथों से पहनाई जो मुझे।
कुछ इस तरह छुआ मेरे पैरों से मेरे दिल को,
उस लम्हे को तन्हाई में हजार बार मैं देखूं।।


बेबसी का आलम कुछ इस कदर है मेरे आशना,
वो साथ होकर भी साथ नहीं है मेरे।
मेरा होकर भी मेरा ना हो सका वो,
उसे पाया भी नहीं, फिर भी खो देने का आज़ार(दर्द) मैं देखूं।।

-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"









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दीक्षा गुणवंत

मेरी आँखों को उसके सिवा कोई भाता नहीं,
कोई कितना भी खूबसूरत शख़्स हो मेरे दिल को पसंद आता नहीं।

मेरी आंखों से मेरे दिल में झांक कर देखो ज़रा आशना,
ये मेरा दिल ओ दिमाग है जहां से उसका ख्याल जाता नहीं 

-लफ्ज़ ए आशना "पहाड़ी"
















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©दीक्षा गुणवंत Handsome might be just a word of materialization and description for external appearance.
But

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दीक्षा गुणवंत

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दीक्षा गुणवंत

वो मोहब्बत कैसी, जो पूरी ना हो सके।
जो पूरी ना हो सके, वो मोहब्बत कैसी?

-लफज-ए-आशना "पहाड़ी"














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©दीक्षा गुणवंत वो मोहब्बत कैसी, जो पूरी ना हो सके।
जो पूरी ना हो सके, वो मोहब्बत कैसी?

-लफज-ए-आशना "पहाड़ी"
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वो मोहब्बत कैसी, जो पूरी ना हो सके। जो पूरी ना हो सके, वो मोहब्बत कैसी? -लफज-ए-आशना "पहाड़ी" #शायरी shayari on love

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दीक्षा गुणवंत

राहत, सुकून, आराम
तुझे क्या-क्या नाम दूँ ?
के आँखें बंद कर तेरा नाम लूँ
और इस बेचैन दिल को आराम दूँ।

          -लफ्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"

















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©दीक्षा गुणवंत राहत, सुकून, आराम
तुझे क्या क्या नाम दूँ ?
के आँखें बंद कर तेरा नाम लूँ
और इस बेचैन दिल को आराम दूँ।

-लफ्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"

राहत, सुकून, आराम तुझे क्या क्या नाम दूँ ? के आँखें बंद कर तेरा नाम लूँ और इस बेचैन दिल को आराम दूँ। -लफ्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"

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दीक्षा गुणवंत

बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो?
जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो?
दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी,
इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो?


इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की,
उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो? 
आज समझाना पड़ेगा इस नादान-ए-दिल को ख़्वाब और हकीकत में अंतर,
गर हर ख़्वाब हकीकत हो जाए तो हज़ारों आशिक़ बरबाद कहाँ से हो?


बहुत मासूम है ये दिल जो आज भी मुंतजिर है उनके हसरत-ए-दीदार को,
जो आसानी से दीदार हो जाए तो ईनायत-ए-यार कहाँ से हो? 
लिखे हैं उनकी यादों में ख़त कई सारे,
जो हर्फ़-दर-हर्फ़ वो पढ़ ले तो इंतज़ार-ए-इज़हार कहाँ से हो?


शायद उन्हें पसंद नहीं हमारा ये मुसलसल उन्हें याद करना,
जो नाम ना आए लबों पर उनका तो हमारी सहर-ए-शुरुवात कहाँ से हो?
तुम्हीं पर शुरू, तुम्हीं पर बीते ये दिन हर दफा,
जो मिल जाए साथ आसानी से तुम्हारा, तो हमें नसीब दर्द-ए-हयात कहाँ से हो?

-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"






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©दीक्षा गुणवंत बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो?
जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो?
दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी,
इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो?


इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की,
उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो?

बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो? जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो? दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी, इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो? इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की, उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो?

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दीक्षा गुणवंत

रोशन है शम-ऐ-महफ़िल जिनसे हर आंगन में,
के उन्हें ही उस लौ को रोशनी को तरसते देखा है।।


-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"













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©दीक्षा गुणवंत रोशन है शम-ऐ-महफ़िल जिनसे हर आंगन में,
के उन्हें ही उस लौ को रोशनी को तरसते देखा है।।
-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

#Texture

रोशन है शम-ऐ-महफ़िल जिनसे हर आंगन में, के उन्हें ही उस लौ को रोशनी को तरसते देखा है।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Texture

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दीक्षा गुणवंत

जब घर जाते वक्त आपको रास्ते कुछ नए नए से लगने लगे,

तो समझ लो के घर से बहुत दूर आ गए हो तुम।।



                      -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"










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©दीक्षा गुणवंत जब घर जाते वक्त आपको रास्ते कुछ नए नए से लगने लगे,

तो समझ लो के घर से बहुत दूर आ गए हो तुम।।

  -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"


#Texture

जब घर जाते वक्त आपको रास्ते कुछ नए नए से लगने लगे, तो समझ लो के घर से बहुत दूर आ गए हो तुम।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Texture

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दीक्षा गुणवंत

दो पल तन्हा क्या बैठे, तेरी याद आ गई।।

तेरी याद आई तो हम सबसे तन्हा हो गए।।



                    -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"












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©दीक्षा गुणवंत दो पल तन्हा क्या बैठे, तेरी याद आ गई।।

तेरी याद आई तो हम सबसे तन्हा हो गए।।
   -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

दो पल तन्हा क्या बैठे, तेरी याद आ गई।। तेरी याद आई तो हम सबसे तन्हा हो गए।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Shayari

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