" मैं तुझे बेहिसाब सा लिखुं तहरीर पे मेरे ,
कभी दुर कभी और पास सा लिखुं अल्फाज़ मेरे ,
बज़्म ख़्यालो का अब जो भी हो जैसे भी हो ,
मैं मुन्तजिर रहुगा तेरा ये बात कुछ जायज ठहरा मेरे . "
--- रबिन्द्र राम
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