हँसते - हँसते आँखों में, आँसू आ जाना। रोते - रोते ग्रीवा, बिन वासू हो जाना।। ग्रीवा और नयन के, ऐसे चक्रव्यूह में। विकल हृदय का, फँस कर यूँ त्रासू हो जाना।। लहर तरंगों के सदृश, भावों का चलना । वशीभूत हो इन भावों के, शर हो जाना।। किससे कहें भावना मन की, और नयन की । जो नसीब में नहीं उसी का, जर हो जाना।। तुमने लाख जुटाए होंगे संसाधन । मगर प्रसाधन देख स्वयं, लज्जित हो जाना।। क्या पाया उन प्रासादों के जमें ढेर में। जिनकी खातिर कुपथ हेतु सज्जित हो जाना।। ©Kaushal Kumar #हांसे -हंसते