White एक नज़्म है गुंजती जैसे किसी महफ़िल में जैसे लब्ज़ रह गए कम खुद की कहानियों में जैसे रहा इंतजार ता उम्र का बिता कुछ पलों में कभी ख़त्म न होने वाले अफसानों में वैसे ही बस हुँ भीड़ में कहीं गुमनाम सा सब कुछ नहीं बस मिल जाए एक पल ज़िन्दगी का क्युकी फिर से होना है मुझे गुमनाम किसी और की कहानियों में ©SAAHIL KUMAR गुमनाम सा