इंतजार नहीं मुमकिन किसको सब्र है यहां बचपन में ही शरारतें छूटी बचपने के छूटे निशान करने है काम कितने उलझन में हैं जान बन पाया नहीं कोई परफेक्ट बनना ही है मुकाम बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla उलझनचाँदनी KK क्षत्राणी