बो एक लम्हा जो तेरे बिना गुजरा नहीं । जो गम ए समंदर से आज तक निकला नहीं ।। जाम पर जाम खुशियों के पीता रहा । जो दिय है ज़ख़्म किसी ने बो अब कोई सीता नहीं । शशि शेखर मिश्र