कहो शांत हों सर्व शांत हों सचराचर अविराम, क्षति न उन्हें हो मुझसे मैं ही सब भूतों का ग्राम ऊँच नीच द्यौ मर्त्य विहारी, सबका आत्माराम! त्याज्य लोक परलोक मुझे जीवन तृष्णा, भवबंध स्वर्ग मही पाताल सभी आशा भय, सुखदुख द्वन्द्व! इस प्रकार काटो बंधन सन्यासी रहो अबंध, ©डॉ.अजय कुमार मिश्र शांत