Nojoto: Largest Storytelling Platform

औरत वो आये हैं जख्मों के निशान मिटाने के लिये ; छे

औरत
वो आये हैं जख्मों के निशान मिटाने के लिये ;
छेड़ेंगे फिर वही सुर ; मुझे सताने के लिये ।
लुटे हो किस तरह ! हँसके पूछता है हर कोई ;
इक सस्ता मजाक हो गया है जमाने के लिये ।
उफ! कितनी जिल्लत; कितना दर्द बहा था मेरी आँखों से;
मगर; लोगों को मसाला मिल गया भुनाने के लिये ।
जख्म नासूर बन गया; मेरा कानून के दायरे में ;
मगर;कोई ढूंढता रस्ता ; कद बढाने के लिये ।
कई खुश हैं चलो ; नदी के किनारे तो टूटे !
अब रस्ते कई खुलेंगे; प्यास बुझाने के लिये ।
फसाना-ए-गम किसे कहें "बादल" इन रुसवाइयों के आँगन में ;
  नाचेगा कौन ? अब मुझे फिर से हंसाने के लिये ।


रचना -यशपाल सिंह "बादल"

©Yashpal singh gusain badal'
  औरत

#Anhoni औरत
वो आये हैं जख्मों के निशान मिटाने के लिये ;
छेड़ेंगे फिर वही सुर ; मुझे सताने के लिये ।
लुटे हो किस तरह ! हँसके पूछता है हर कोई ;
इक सस्ता मजाक हो गया है जमाने के लिये ।
उफ! कितनी जिल्लत; कितना दर्द बहा था मेरी आँखों से;

औरत #Anhoni औरत वो आये हैं जख्मों के निशान मिटाने के लिये ; छेड़ेंगे फिर वही सुर ; मुझे सताने के लिये । लुटे हो किस तरह ! हँसके पूछता है हर कोई ; इक सस्ता मजाक हो गया है जमाने के लिये । उफ! कितनी जिल्लत; कितना दर्द बहा था मेरी आँखों से; #कविता

402 Views