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My Bicycle पांचवी तक चपरासी लेकर आता जाता था

My Bicycle       पांचवी तक चपरासी लेकर आता जाता था। छठवीं से आठवीं तक मैं अपना कदम बढ़ाता था।। एक दिन बोला हे मैया चलते चलते हम थक जाते हैं। सात किलोमीटर्स आना जाना दर्द बहुत दे जाते हैं।। इकलौता होने के कारण मैया मुझ पर स्नेह करती थीं करती हैं। मेरा तिल भर दुख दर्द पीड़ा बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं।। बनिया को बुलवाकर मैया गेहूं को बेच दिया। 24 सौ का नई साइकिल मुझे खरीद एक दिया।। मां की ली हुई साइकिल नहीं वह मेरी जान थी। अंतरात्मा में खुश थे सभी बच्चों में बन गई पहचान थी।। कुछ दिन बीते ही थे तभी घर में मेरे चोरी हो गई। सभी वस्तुओं के साथ प्राणों से प्यारी साइकिल खो गई।। इंटर तक कॉलेज व कोचिंग पैदल आते जाते थे। अपने पहली साइकिल के बारे में सोच कर बहुत उदास हो जाते थे।। नोजोटो पर मैंने पहली साइकिल के बारे में लिखा सत्य कहानी है। मानव जीवन होता है संघर्ष मय शायद हर जीव की अपनी अपनी अलग कहानी है।।

©Govind dhar Dwivedi लेखक-जी डी द्विवेदी

#WorldBicycleDay2021
My Bicycle       पांचवी तक चपरासी लेकर आता जाता था। छठवीं से आठवीं तक मैं अपना कदम बढ़ाता था।। एक दिन बोला हे मैया चलते चलते हम थक जाते हैं। सात किलोमीटर्स आना जाना दर्द बहुत दे जाते हैं।। इकलौता होने के कारण मैया मुझ पर स्नेह करती थीं करती हैं। मेरा तिल भर दुख दर्द पीड़ा बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं।। बनिया को बुलवाकर मैया गेहूं को बेच दिया। 24 सौ का नई साइकिल मुझे खरीद एक दिया।। मां की ली हुई साइकिल नहीं वह मेरी जान थी। अंतरात्मा में खुश थे सभी बच्चों में बन गई पहचान थी।। कुछ दिन बीते ही थे तभी घर में मेरे चोरी हो गई। सभी वस्तुओं के साथ प्राणों से प्यारी साइकिल खो गई।। इंटर तक कॉलेज व कोचिंग पैदल आते जाते थे। अपने पहली साइकिल के बारे में सोच कर बहुत उदास हो जाते थे।। नोजोटो पर मैंने पहली साइकिल के बारे में लिखा सत्य कहानी है। मानव जीवन होता है संघर्ष मय शायद हर जीव की अपनी अपनी अलग कहानी है।।

©Govind dhar Dwivedi लेखक-जी डी द्विवेदी

#WorldBicycleDay2021