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सदियाँ गुज़र गईं या कि लम्हा ठहर गया जबसे बिछड़ के म

सदियाँ गुज़र गईं या कि लम्हा ठहर गया
जबसे बिछड़ के मुझसे मेरा हमसफ़र गया।
मंज़िल का पता है न पता अपने आप का
उस ओर चल दिये जिधर रहगुज़र गया।
खुशबू लुटा रहा था वो गुलज़ार था हर -सू
लगते ही हाथ दर्द से वो गुल बिखर गया।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #हमसफ़र
सदियाँ गुज़र गईं या कि लम्हा ठहर गया
जबसे बिछड़ के मुझसे मेरा हमसफ़र गया।
मंज़िल का पता है न पता अपने आप का
उस ओर चल दिये जिधर रहगुज़र गया।
खुशबू लुटा रहा था वो गुलज़ार था हर -सू
लगते ही हाथ दर्द से वो गुल बिखर गया।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #हमसफ़र