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ख़ुदा का शुक्र कि सुनता रहा ख़ुदा मेरी कभी न अर्श

ख़ुदा का शुक्र कि सुनता रहा ख़ुदा मेरी
कभी न अर्श से लौटी कोई दुआ मेरी

मैं माँगती हूँ उसी से कि वो मिरा रब है
उसे पसंद है शायद यही अदा मेरी

चला गया था जो वापस पलट भी सकता था
मगर गले में फँसी रह गई सदा मेरी

शुमार होते हैं शायद वो सब फ़रिश्तों में
गिनाते रहते हैं जो लोग हर ख़ता मेरी

हयात-ओ-मौत के आगे भी ज़िंदगी है कहीं
न इब्तिदा है मिरी ये न इंतिहा मेरी

ये वक़्त-ए-नज़अ' मिरा चारागर समझ पाया
बस एक लफ़्ज़ मोहब्बत का था दवा मेरी

बदल रही हूँ मुसव्विर मैं अपने धुँदले रंग
अब एक बार ये तस्वीर फिर बना मेरी

हमेशा चाहा कि सब्र-ओ-रज़ा पे शेर कहूँ
हमेशा फ़िक्र रुकी जा के कर्बला मेरी

मिरे इमाम भी हक़-गो रहे सर-ए-नेज़ा
'नक्श' अलम भी रही अज़्म की रिदा मेरी

©Jashvant
  #Khuda#Good Morning friends  rashmika_mandanna. PФФJД ЦDΞSHI Raj Guru Ek Alfaaz Shayri Madhu Kashyap