जीवन मे पहली बार दिखी वो बेबाक पारदर्शिता कि आऱ पार के दृश्य भी सजीव होकर दिखने लगे थे मुझे वो जहर भी दिख गया था जिसने जीवन सागर क़ी मिठास को ज़हरीला बना कर कड़वाहट से भर दिया था मुझे वो भी दिखने लगे जिंन्हो ने मेरे सपनो के खलिहान मे काँटों क़ी बाढ़ लगाई थी. और वो सबआज मेरे सामने खडे दिख रहे थे मुझे आज वो भी दिखने लगा कि जीवन सागर के अंतर. स्थल मे पैठे हुए मेरे प्रोड निरीह से सपने फिर से सतह पर आने के लिये छटपटा रहे थे ©Parasram Arora बेबाक पारदर्शिता