शायरी की इब्तिदा की............दास्ताँ || मिट चुके अलफ़ाज़ कुछ बाकी निशाँ || खूबसूरत इक हसीं तहरीर है.... चंद सूखे गुल महकते दरमियाँ || चांदनी उतरी है क्यूँ चश्मों में फिर..... तीरगी कुछ शाम का गहरा धुआँ || रोज़ इक नाशा दगी का फ़लसफ़ा…… कुछ तबस्सुम और कुछ नादानियाँ || दिल में बस इक मुस्कुराहट सी खिली … याद आयी कुछ शरारत शोखियाँ "रिक्त" है ये शायरी का .......................... तर्ज़ुमा आतिश-ए-तहरीर पुर सोज-ए-निहाँ || ©Sanjeev Shukla 2122 2122 212