मैंने आज एक ही रोटी खाई,जो पर्याप्त है। कोई नए कपड़े नहीं खरीदे,इसकी कोई जरूरत नहीं। सौ का नोट नहीं आज मैंने चिल्लर से काम चलाया। ये सब जो इतना ज़रूरी था कल तक, आज इनके बिना भी कुछ अधूरा नहीं।सब खेल ही तृष्णा का है, ये गर सूक्ष्म हो जाए तो मुश्किल की कोई बात ही नहीं। निर्भरता कुछ कम लेते हैं, अब से इसी तर्ज़ पर जी लेते हैं। #तृष्णा #ज्ञान_की_बात 🤘🤘