हैं राम-चन्द्र के वंशज हम डरते नहीं बाण-कटारी से | शीश विलग करते अरि का हम तेज धार तलवारी से || इक पुष्प नहीं चुनने देंगे अब काश्मीर-फुलवारी से | ध्वज संग राष्ट्र-गीत गायेंगे घर-घर की अट्टारी से || हैं राम-चन्द्र के वंशज हम डरते नहीं बाण-कटारी से | शीश विलग करते अरि का हम तेज धार तलवारी से || इक पुष्प नहीं चुनने देंगे अब काश्मीर-फुलवारी से | ध्वज संग राष्ट्र-गीत गायेंगे घर-घर की अट्टारी से ||