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(Verse 1) उठी सुबह, सुनी घड़ी की टिक-टिक, माँ बोली

(Verse 1)
उठी सुबह, सुनी घड़ी की टिक-टिक,
माँ बोली, "आज फिर से बिजली गई, ओह फ़िक-फ़िक।"
दीवाली में नए कपड़े? अरे वही पुरानी ट्रिक,
सलवार क़मीज़ पलट के पहनी, और बन गई new chick!

(Chorus)
मध्यम वर्ग की गलियां, जहां हर दिन है उत्सव,
हर पैसे में छुपा सपना, और जीवन में अनगिनत त्यौहार।
बजार से लौटी, बिना डिस्काउंट की खरीददारी? अरे ना रे भावा,
खरीदारी में चुटकुला, और मूल में मुस्कान, हां हमारी तो वही अदा।

(Verse 2)
सिलाई मशीन पे, माँ ने बुनी मेरी टोप,
फ़ैशन शो की रैंप पर चलूँ, बिना शॉपिंग स्टॉप।
रोज जीवन की छोटी-छोटी बातों में छुपा जो बड़ा प्यार,
वही है मेरी मध्यम वर्गीय जिंदगी, सजी-धजी और अनुपम अहसास से भरा।

©J.S.T.quote 
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