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#OpenPoetry देश को न जाने कितने साल हुये । काफ़ी गह

#OpenPoetry देश को न जाने कितने साल हुये । काफ़ी गहरी है इसकी धरती । अजीब सच है की मैं अपने देश मे ही नहीं घूम सका हूँ । देश के उन बहोत सारे लोगों की तरह जो एक ही मिट्टी मे जन्म लिये और उसी मिट्टी मे मिल गये । वो सारे लोग जिन्होने एक ही स्थान और एक ही एंगल से देश का लंबा वक़्त देखा । सच मे कितना धैर्य रहा होगा न उनके पास भी । निर्भरता मे पूरा जीवन बिता होगा । कभी डाकिये का इंतज़ार ,कभी आकाशवाणी के न्यूज़ का इंतज़ार,कभी चुनाव मे अपने पसंद के नेताओं को  देख पाने का इंतज़ार । सच मे उन्होने कई सालों से कोई यात्रा नहीं की होगी  । उनकी यात्रा तो बस घर से खेत और खेत से चौपाल तक रही होगी ।देश मे कितने प्रकार का जीवन है न । एक देश मे न जाने कितने देश हैं । मैंने कई हॉलीवुड फिल्में देखी एक बात कॉमन पाया की उनके जीने का ढंग एक जैसा है । सिस्टम ने यूनाइट कर दिया है बहोत देशों को  । हमें देश ने हमेशा आज़ाद कर रखा है । हम अपनी विविधताओं मे स्वतंत्र हैं ,अपने चिंतन मे आज़ाद है ।

मुझे ये देश ऐसे ही बेहद पसंद है । मैं ऐसे ही इसे स्वीकारता हूँ । मैं इसकी नदियों ,पहाड़ियों ,शहरों ,गाँवों और उसकी अस्मिताओं का बेहद सम्मान करते हुये इसे ऐसे ही अपनाता हूँ । उन सारे लोगों की तरह जिन्होने बारी बारी से देश का बोझा अपने कांधे लिया और जीते चले गये । जिन्होने देश से कुछ भी ज्यादा नहीं मांगा बल्कि इसकी मिट्टी से जो कुछ मिला उसे प्रेम से अपनाया किया । जो कभी राजनीति को नहीं समझ पाये बस सुबह काम पर गये और शाम को लौट आये । जब भी कुछ बुरा हुआ तो एक टीस मन मे बैठ गयी की अरे ऐसा नहीं होना था । देश के वे लोग जो हमेशा इस मिट्टी मे तृप्त रहे । मैं उन साधारण लोगों की बात कर रहा हूँ जो सिर्फ साधारण तरीके से देश के दायित्वों का निर्वहन करते चले गये । जिन्होने देश के हर नियम को स्वीकार किया और कानून को खुद से ज्यादा इज्ज़त दी । जो कुछ भी इनसे कहा गया वो देश के अपने हिस्से से इसे स्वीकारते चले गये । इस आज़ाद देश मे मेरा भी ऐसा ही एक सपना है । मैं कहीं और नहीं जाना चाहता ,बस मैं इसी देश मे मर जाना चाहता हूँ । इस अपनी यात्रा मे मिले अपने ही लोगों की मदद और इस मिट्टी के लिए जो कुछ भी संभव हो सके । मैं भी देश के उन लोगों की तरह अज्ञात रहकर इस देश को अपने पूरे अभिमान के साथ जीना चाहता हूँ । 

एक ही गाना याद आता है रह रह के ‘” देश मेरे ,देश मेरे ,मेरी शान है तू , देश मेरे देश मेरे मेरी जान है तू’” #OpenPoetry 
देश को न जाने कितने साल हुये । काफ़ी गहरी है इसकी धरती । अजीब सच है की मैं अपने देश मे ही नहीं घूम सका हूँ । देश के उन बहोत सारे लोगों की तरह जो एक ही मिट्टी मे जन्म लिये और उसी मिट्टी मे मिल गये । वो सारे लोग जिन्होने एक ही स्थान और एक ही एंगल से देश का लंबा वक़्त देखा । सच मे कितना धैर्य रहा होगा न उनके पास भी । निर्भरता मे पूरा जीवन बिता होगा । कभी डाकिये का इंतज़ार ,कभी आकाशवाणी के न्यूज़ का इंतज़ार,कभी चुनाव मे अपने पसंद के नेताओं को  देख पाने का इंतज़ार । सच मे उन्होने कई सालों से कोई यात्रा नहीं की होगी  । उनकी यात्रा तो बस घर से खेत और खेत से चौपाल तक रही होगी ।देश मे कितने प्रकार का जीवन है न । एक देश मे न जाने कितने देश हैं । मैंने कई हॉलीवुड फिल्में देखी एक बात कॉमन पाया की उनके जीने का ढंग एक जैसा है । सिस्टम ने यूनाइट कर दिया है बहोत देशों को  । हमें देश ने हमेशा आज़ाद कर रखा है । हम अपनी विविधताओं मे स्वतंत्र हैं ,अपने चिंतन मे आज़ाद है ।

मुझे ये देश ऐसे ही बेहद पसंद है । मैं ऐसे ही इसे स्वीकारता हूँ । मैं इसकी नदियों ,पहाड़ियों ,शहरों ,गाँवों और उसकी अस्मिताओं का बेहद सम्मान करते हुये इसे ऐसे ही अपनाता हूँ । उन सारे लोगों की तरह जिन्होने बारी बारी से देश का बोझा अपने कांधे लिया और जीते चले गये । जिन्होने देश से कुछ भी ज्यादा नहीं मांगा बल्कि इसकी मिट्टी से जो कुछ मिला उसे प्रेम से अपनाया किया । जो कभी राजनीति को नहीं समझ पाये बस सुबह काम पर गये और शाम को लौट आये । जब भी कुछ बुरा हुआ तो एक टीस मन मे बैठ गयी की अरे ऐसा नहीं होना था । देश के वे लोग जो हमेशा इस मिट्टी मे तृप्त रहे । मैं उन साधारण लोगों की बात कर रहा हूँ जो सिर्फ साधारण तरीके से देश के दायित्वों का निर्वहन करते चले गये । जिन्होने देश के हर नियम को स्वीकार किया और कानून को खुद से ज्यादा इज्ज़त दी । जो कुछ भी इनसे कहा गया वो देश के अपने हिस्से से इसे स्वीकारते चले गये । इस आज़ाद देश मे मेरा भी ऐसा ही एक सपना है । मैं कहीं और नहीं जाना चाहता ,बस मैं इसी देश मे मर जाना चाहता हूँ । इस अपनी यात्रा मे मिले अपने ही लोगों की मदद और इस मिट्टी के लिए जो कुछ भी संभव हो सके । मैं भी देश के उन लोगों की तरह अज्ञात रहकर इस देश को अपने पूरे अभिमान के साथ जीना चाहता हूँ । 

एक ही गाना याद आता है रह रह के ‘” देश मेरे ,देश मेरे ,मेरी शान है तू , देश मेरे देश मेरे मेरी जान है तू’”
#OpenPoetry देश को न जाने कितने साल हुये । काफ़ी गहरी है इसकी धरती । अजीब सच है की मैं अपने देश मे ही नहीं घूम सका हूँ । देश के उन बहोत सारे लोगों की तरह जो एक ही मिट्टी मे जन्म लिये और उसी मिट्टी मे मिल गये । वो सारे लोग जिन्होने एक ही स्थान और एक ही एंगल से देश का लंबा वक़्त देखा । सच मे कितना धैर्य रहा होगा न उनके पास भी । निर्भरता मे पूरा जीवन बिता होगा । कभी डाकिये का इंतज़ार ,कभी आकाशवाणी के न्यूज़ का इंतज़ार,कभी चुनाव मे अपने पसंद के नेताओं को  देख पाने का इंतज़ार । सच मे उन्होने कई सालों से कोई यात्रा नहीं की होगी  । उनकी यात्रा तो बस घर से खेत और खेत से चौपाल तक रही होगी ।देश मे कितने प्रकार का जीवन है न । एक देश मे न जाने कितने देश हैं । मैंने कई हॉलीवुड फिल्में देखी एक बात कॉमन पाया की उनके जीने का ढंग एक जैसा है । सिस्टम ने यूनाइट कर दिया है बहोत देशों को  । हमें देश ने हमेशा आज़ाद कर रखा है । हम अपनी विविधताओं मे स्वतंत्र हैं ,अपने चिंतन मे आज़ाद है ।

मुझे ये देश ऐसे ही बेहद पसंद है । मैं ऐसे ही इसे स्वीकारता हूँ । मैं इसकी नदियों ,पहाड़ियों ,शहरों ,गाँवों और उसकी अस्मिताओं का बेहद सम्मान करते हुये इसे ऐसे ही अपनाता हूँ । उन सारे लोगों की तरह जिन्होने बारी बारी से देश का बोझा अपने कांधे लिया और जीते चले गये । जिन्होने देश से कुछ भी ज्यादा नहीं मांगा बल्कि इसकी मिट्टी से जो कुछ मिला उसे प्रेम से अपनाया किया । जो कभी राजनीति को नहीं समझ पाये बस सुबह काम पर गये और शाम को लौट आये । जब भी कुछ बुरा हुआ तो एक टीस मन मे बैठ गयी की अरे ऐसा नहीं होना था । देश के वे लोग जो हमेशा इस मिट्टी मे तृप्त रहे । मैं उन साधारण लोगों की बात कर रहा हूँ जो सिर्फ साधारण तरीके से देश के दायित्वों का निर्वहन करते चले गये । जिन्होने देश के हर नियम को स्वीकार किया और कानून को खुद से ज्यादा इज्ज़त दी । जो कुछ भी इनसे कहा गया वो देश के अपने हिस्से से इसे स्वीकारते चले गये । इस आज़ाद देश मे मेरा भी ऐसा ही एक सपना है । मैं कहीं और नहीं जाना चाहता ,बस मैं इसी देश मे मर जाना चाहता हूँ । इस अपनी यात्रा मे मिले अपने ही लोगों की मदद और इस मिट्टी के लिए जो कुछ भी संभव हो सके । मैं भी देश के उन लोगों की तरह अज्ञात रहकर इस देश को अपने पूरे अभिमान के साथ जीना चाहता हूँ । 

एक ही गाना याद आता है रह रह के ‘” देश मेरे ,देश मेरे ,मेरी शान है तू , देश मेरे देश मेरे मेरी जान है तू’” #OpenPoetry 
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मुझे ये देश ऐसे ही बेहद पसंद है । मैं ऐसे ही इसे स्वीकारता हूँ । मैं इसकी नदियों ,पहाड़ियों ,शहरों ,गाँवों और उसकी अस्मिताओं का बेहद सम्मान करते हुये इसे ऐसे ही अपनाता हूँ । उन सारे लोगों की तरह जिन्होने बारी बारी से देश का बोझा अपने कांधे लिया और जीते चले गये । जिन्होने देश से कुछ भी ज्यादा नहीं मांगा बल्कि इसकी मिट्टी से जो कुछ मिला उसे प्रेम से अपनाया किया । जो कभी राजनीति को नहीं समझ पाये बस सुबह काम पर गये और शाम को लौट आये । जब भी कुछ बुरा हुआ तो एक टीस मन मे बैठ गयी की अरे ऐसा नहीं होना था । देश के वे लोग जो हमेशा इस मिट्टी मे तृप्त रहे । मैं उन साधारण लोगों की बात कर रहा हूँ जो सिर्फ साधारण तरीके से देश के दायित्वों का निर्वहन करते चले गये । जिन्होने देश के हर नियम को स्वीकार किया और कानून को खुद से ज्यादा इज्ज़त दी । जो कुछ भी इनसे कहा गया वो देश के अपने हिस्से से इसे स्वीकारते चले गये । इस आज़ाद देश मे मेरा भी ऐसा ही एक सपना है । मैं कहीं और नहीं जाना चाहता ,बस मैं इसी देश मे मर जाना चाहता हूँ । इस अपनी यात्रा मे मिले अपने ही लोगों की मदद और इस मिट्टी के लिए जो कुछ भी संभव हो सके । मैं भी देश के उन लोगों की तरह अज्ञात रहकर इस देश को अपने पूरे अभिमान के साथ जीना चाहता हूँ । 

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