मेरी परछाई मुझे क्या तुझे आगे पीछे न दिखे खिड़कियों से आती रेशम सी किरणे उनमें झांकती खुशी न दिखे अंधेरो से क्यों डरते एक दीप की एक लौ से तो वो न टिकते परछाई है हम तेरी इतना ही बताते जंग जिंदगी की जीतनी हो तो हमें अंदर में समा लो फिर चारो और नजर डाल लो नजर जब न आये हमें भूल अपनी मंजिल को चुन लो