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मनमौजी राजा मनमौजी प्रजा अधर्मी राजा धर्म का विस्

मनमौजी राजा मनमौजी प्रजा

अधर्मी राजा धर्म का विस्तार विस्तृत चाहता है,
परधर्मी को भयभीत कर आधिपत्य चाहता है।
राज्य पूर्ण रुप से द्वेष नीति के वातावरण में हो,
एवं राजा द्वेष मुकुट से राज्याभिषेक चाहता है।
राजा विभिन्न नव वेषभूषा में नीत अवतरित हो,
प्रजा के धन से स्वयं का प्रचार प्रसार चाहता है।
राजधर्म का घनघोर अपमान करता करवाता,
स्वयं हेतु श्रेष्ठ राष्ट्रवादी का तमगा भी चाहता है।
राजनगर के बाज़ार हाट में भले मंदी बनी रहे,
पर आंदोलन को दमन से बंदी लाना चाहता है।
वधु को नगर वधु कहकर अपमानित भी करे,
पर वधु शीलभंगी को मुक्त कर संस्कारी कहता है।

©अदनासा-
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