अपने कसूर को कसौटी पर तौलना चाहते हैं अपने हक की हकीकत को टटोलना चाहते हैं खामोशियों के पैमानों से शोर बटोरना चाहते है हम पत्थरों की दीवारें शीशे से तोड़ना चाहते हैं एक दिन के सम्मान से वर्ष भर के घाव भरते नहीं सोच ही है सरोकार विचार दिन देख बदलते नहीं बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla सरोकार अज्ञात