मन करता हैँ पूरा ब्रह्माण्ड समेट लू बाहो मे किंतु अपने मे इतनी विशालता लाऊ कहा से मन करता हैँ पूरा आकाश नाप लू उड़ते उड़ते किन्तु इतने ऊर्जावान पँख मै लाऊँ कहा से बंजर ज़मीन पर मै अध् खिले गुलाब कि तरह खिला हूं किन्तु वो भीनी भीनी खुशबू मै लाऊँ कहा से करुणा और प्रेम क़े मेघ आज भी उतरते हैँ मन क़े आकाश पर किन्तु वो करुणा और प्रेम की बूँदे बरसाने क़े लिए ऐसी धरती लाऊँ कहा से मन करता हैँ........