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ऐ गरीबी...! तुने हमारे बचपन से बढ़ाकर दूरी क्या खू

ऐ गरीबी...!
तुने हमारे बचपन से बढ़ाकर दूरी
क्या खूब करवाई बाल मज़दूरी
इस बेबसी के दलदल में फँसाकर
हमारी चाहतों का गला घोंट
ज़रूरतों को भी ना दी मंज़ूरी
और लोग हमें बताएँ कि पढाई- लिखाई भी है ज़रूरी
ख्वाहिशों का तो पता नहीं
बस दो वक़्त के रोटी की कमी करनी  है पूरी
और कुछ भी नहीं ज़रूरी,
फिर कैसे न कहुँ...
कि कभी माँ बाप की भी कुछ ऐसी ही थी मजबूरी
खुद से क्या पूछूँ
बात खुद्दारी पर आई है और
उस खुदा ने ही हमें यह राह दिखाई है
अब खुद का खुद से नाता नहीं,
पेट भर कोई खिलता नहीं और
मन की मर्ज़ी मैं बताता नहीं
ऐ ख़ुदा...अब तु ही बता
अगर मैं किसी का खाता नहीं
इसमें मेरी क्या खता?
जब तुने ही दी ये सज़ा
तो क्यूँ ना रहूँ तुझसे ख़फ़ा?
देनी थी जब गरीबी ही हमारे खाते में
तो मैं बाल मजदूरी का ही क्यों न खाता?

©Deepali Singh #baalmazduri
ऐ गरीबी...!
तुने हमारे बचपन से बढ़ाकर दूरी
क्या खूब करवाई बाल मज़दूरी
इस बेबसी के दलदल में फँसाकर
हमारी चाहतों का गला घोंट
ज़रूरतों को भी ना दी मंज़ूरी
और लोग हमें बताएँ कि पढाई- लिखाई भी है ज़रूरी
ख्वाहिशों का तो पता नहीं
बस दो वक़्त के रोटी की कमी करनी  है पूरी
और कुछ भी नहीं ज़रूरी,
फिर कैसे न कहुँ...
कि कभी माँ बाप की भी कुछ ऐसी ही थी मजबूरी
खुद से क्या पूछूँ
बात खुद्दारी पर आई है और
उस खुदा ने ही हमें यह राह दिखाई है
अब खुद का खुद से नाता नहीं,
पेट भर कोई खिलता नहीं और
मन की मर्ज़ी मैं बताता नहीं
ऐ ख़ुदा...अब तु ही बता
अगर मैं किसी का खाता नहीं
इसमें मेरी क्या खता?
जब तुने ही दी ये सज़ा
तो क्यूँ ना रहूँ तुझसे ख़फ़ा?
देनी थी जब गरीबी ही हमारे खाते में
तो मैं बाल मजदूरी का ही क्यों न खाता?

©Deepali Singh #baalmazduri
deepalisingh8800

Deepali Singh

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