“कैद में प्रकृति” पंछी भी अपना घोंसला छोड़ चले जा हर भरे पेड़ सूखते चले गये हरी पत्तियांँ टहनी साख भी सुख गये कैद होकर रह गई प्रकृति बंद पिजड़े में प्रकृति में फैला पानी और हवा जहरीली सांस लेना दुभर हो गया पौधे, पशु और पंछी सब परेशाँ हो चले अपना घर ही वो छोड़ चले खुले आसमांँ, शुद्ध हवा और पानी की ज़रूरत उड़ने के लिए दवा नहीं हमें दुआ की ज़रूरत खोकर ख़ुद को जिसने पूरे जीवन अपने कर्तव्य का निर्वाह किया वो प्रकृति आज ढूँढते फिरे अपना वजूद यहींं कहीं अंजान राहों पर जीवन में दिखे अंधेरा रात काली इंसान से पूछती कोई तो दिखा दे हमें जीवन में रोशनी कोई तो दे दो हमें जीने की लिए पेड़ों को हरियाली लौटा कर लाओ तुम पेड़ पौधों की ललहाती हरियाली लौट कर सब आए अपने घर मंज़िल की ओर प्रकृति भी कैद से आज़ाद जीए अपने छोर दे दो पंछी को भी खुल कर उड़ने की आज़ादी उड़ सकें हम भी अपने खुले सासों संग पंख फैला दूर उड़ती फिरूँ दूर आसमांँ में। — % & #rztask263 #rzलेखकसमूह #restzone #collabwithrestzone #yqdidi #yqrz #rzwriteshindi #unique_upama