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  उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब चा



 


उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब




चाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं
चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब

आखिर मैं किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते हैं
कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब

©S.P. sahab Kekri
  rahet indori shab
spsahabkekri7100

S.P. sahab

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rahet indori shab #शायरी

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