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आज जो तुझे सपनों में समेटा ईश्क मुकम्मल हुआ कौन जा

आज जो तुझे सपनों में समेटा ईश्क मुकम्मल हुआ
कौन जाने कल का इशारा क्या है
गुरबत नफ़रत मक्कारी पग - पग पर मिलते हैं
कौन जाने कल का सहारा क्या है
तुम दूर गए तब बस इतनी शिकायत थी मुझसे
कौन जाने कल का गुजारा क्या है
रूठकर भी जो पास होते तो देखते आज तुम
चांद तारे कदमों में नज़ारा क्या है

©Deepnarayan Upadhyay
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