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"दहेज़" दहेज़ पुराने कुरूतियों से जन्मा एक अन्धविस्व

"दहेज़"
दहेज़ पुराने कुरूतियों से जन्मा एक अन्धविस्वासी रूप है एक अखंडित परंपरा है जिसे हमारे समाज ने हमारे लोगो ने एक रूप दिया हुआ है जिसमे दौलत पे सवार होकर एक बेटी अपने पिता का आँगन छोड़ दूसरे परिवार का हिस्सा बनने जाती है औऱ उस पिता को बेबस, परेशान, चिंताजनक, कर्ज़दार छोड़ आती है जो उसके शादी के लिए अपनी ज़िन्दगी भर की कमाई अपना ख़ून-पसीना बहाता है 
दहेज़ है क्या, क्या एक पिता का दौलत से सौदा करना अपनी बेटी का एक पराए मर्द से जो उसे ज़िन्दगी भर ख़ुशियाँ दे या फ़िर अपने दामाद का घऱ उन तमाम चीज़ो से भर देना जिन्हें ख़रीदने के वो क़ाबिल नहीं, या फ़िर अपनी बेटी को दौलत की आड़ पे ऐसे घऱ में भेज देना जहाँ उनकी पहली पसंद उनकी बेटी नहीं उनकी ज़ायदाद हो
एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से दहेज़ माँगना इतना आसान भी नहीं है उसके लिए उस व्यक्ति के अंदर लालच, कमीनापन, नाक़ाबिल, भिखारियों सा स्वरूप इनका होना आवश्यक है 
आप लोग ये क्यों नहीं समझतें जो पिता अपनी बेटी को बचपन से राजकुमारी की तरह पालता है एक उम्र के बाद उससे बिछड़ना उसके लिए कितना दर्दनीय होता है वो अपने घर की लक्ष्मी अपने घर की मुस्कान, उनका स्वाभिमान, उनका सम्मान, उनकी इज़्ज़त एक भरोसे के रूप में आपको देता है औऱ आप इस खूबसूरत रिश्ते को दहेज़ जैसे लालची रूप में पाप का भागीदार बनाते है
लड़कियों चाहें तुम्हें ज़िन्दगी भर अपने माँ-पिता जी के साथ रहना पड़े पर उस घऱ में क़भी मत जाना जो घऱ तुम्हारे पिता के दिये दौलत की बागडोर से बंधा हो जिस घर मे तुम्हारी इज़्ज़त ना हो जो घऱ तुम्हारे पिता को कर्ज़दार बनाए, बारात को वापस अपने आँगन से लौटाते समय शायद एक बार तुम्हें सर्मिन्दा होना पड़े पर जिंदगी भर की क़िल्लत से तो तुम्हें छुटकारा मिलेगा, कुँवारी रहना पसंद करना पर अपने पिता की पगड़ी किसी के सामने झुकने मत देना।

©Akhilesh Dhurve #akhileshdhurve #Dahej #Marriage #India #justice #beti #girl #follow #law 

#Smile
"दहेज़"
दहेज़ पुराने कुरूतियों से जन्मा एक अन्धविस्वासी रूप है एक अखंडित परंपरा है जिसे हमारे समाज ने हमारे लोगो ने एक रूप दिया हुआ है जिसमे दौलत पे सवार होकर एक बेटी अपने पिता का आँगन छोड़ दूसरे परिवार का हिस्सा बनने जाती है औऱ उस पिता को बेबस, परेशान, चिंताजनक, कर्ज़दार छोड़ आती है जो उसके शादी के लिए अपनी ज़िन्दगी भर की कमाई अपना ख़ून-पसीना बहाता है 
दहेज़ है क्या, क्या एक पिता का दौलत से सौदा करना अपनी बेटी का एक पराए मर्द से जो उसे ज़िन्दगी भर ख़ुशियाँ दे या फ़िर अपने दामाद का घऱ उन तमाम चीज़ो से भर देना जिन्हें ख़रीदने के वो क़ाबिल नहीं, या फ़िर अपनी बेटी को दौलत की आड़ पे ऐसे घऱ में भेज देना जहाँ उनकी पहली पसंद उनकी बेटी नहीं उनकी ज़ायदाद हो
एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से दहेज़ माँगना इतना आसान भी नहीं है उसके लिए उस व्यक्ति के अंदर लालच, कमीनापन, नाक़ाबिल, भिखारियों सा स्वरूप इनका होना आवश्यक है 
आप लोग ये क्यों नहीं समझतें जो पिता अपनी बेटी को बचपन से राजकुमारी की तरह पालता है एक उम्र के बाद उससे बिछड़ना उसके लिए कितना दर्दनीय होता है वो अपने घर की लक्ष्मी अपने घर की मुस्कान, उनका स्वाभिमान, उनका सम्मान, उनकी इज़्ज़त एक भरोसे के रूप में आपको देता है औऱ आप इस खूबसूरत रिश्ते को दहेज़ जैसे लालची रूप में पाप का भागीदार बनाते है
लड़कियों चाहें तुम्हें ज़िन्दगी भर अपने माँ-पिता जी के साथ रहना पड़े पर उस घऱ में क़भी मत जाना जो घऱ तुम्हारे पिता के दिये दौलत की बागडोर से बंधा हो जिस घर मे तुम्हारी इज़्ज़त ना हो जो घऱ तुम्हारे पिता को कर्ज़दार बनाए, बारात को वापस अपने आँगन से लौटाते समय शायद एक बार तुम्हें सर्मिन्दा होना पड़े पर जिंदगी भर की क़िल्लत से तो तुम्हें छुटकारा मिलेगा, कुँवारी रहना पसंद करना पर अपने पिता की पगड़ी किसी के सामने झुकने मत देना।

©Akhilesh Dhurve #akhileshdhurve #Dahej #Marriage #India #justice #beti #girl #follow #law 

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