किसी से मांगकर हमनें कभी लहज़ा नहीं पहना। हमारी मुफ़लिसी ने आज तक गहना नहीं पहना।। , किसी भी हाल में घूँघट उतारा ही नहीं उसनें। लिबास-ए-मुफ़लिसी ने रेशमी कपड़ा नहीं पहना।। , तुम्हें कल देख कर दिल को तसल्ली मिल गयी मेरे। यही की आज फिर तुमनें नया चेहरा नहीं पहना।। , ख़ुशामद इत्र की करतें तो खुश्बू वो हमें देता। लेकिन हर हाल में हमनें कोई पहरा नहीं पहना।। , हमारी नीव पर बच्चे मज़े से खेल सकतें है। हमारी नीव ने अब तक कोई कमरा नहीं पहना।। , किसी में है अगर क़ुव्वत तो मुझमें खींच दे सरहद। किसी भी हाल में हमनें कभी शज़रा नहीं पहना।। , किसी के वस्ल ने सबकों यहाँ बर्बाद कर डाला। हमारे हिज्र ने लेकिन कोई सपना नहीं पहना।। #रमेश