फिर एक रोज (अनुशीर्षक में पढ़ें) फिर एक रोज फिर एक रोज हम भी बड़े हो गए इतने बड़े कि माँ की गोद में, सर रखके सोने को तरसने लगे अपनी जिम्मेदारियों में ऐसे मशगूल हुए हम अपनों के बीच रहते हुए भी हम,