झंझावत की आंधी को,किसने देखा? कौन पुकारा! मौन हो चुकी लबों पर ,किसने रखा, हाँथ पसारा? बापू के सपने रौंद रहा , कौन देशहित को साध रहा? राष्ट्र शिल्प के धागे से,बापू के चरखे बांध रहा! मिट्टी की खुशबू,जो हर-जीवन को जिलाती हैं कहाँ हो बिछड़े हे रखवाले!,माँ भूमि तुम्हे बुलाती हैं! राजनीति की गद्दी से,क्या उन्हें लाज भी आती है, गद्दी से खुशबू कहाँ महकती,क्या गंध उन्हें ही भाती है? बापू के श्रम की सादगी,खादी की बरकत मिश्रित हो, लट्ठे के पीछे चल पड़ता,वो देश हमारा विकसित ही! ना मरना ,ना झुकना वीरों,ये देश तुम्ही से मर्मित है, इस मिट्टी की आंख में पानी,तेरी आँखों से समर्पित है!! हमारे देश के श्रमिकों के लिए✊✊✊✊🇮🇳🇮🇳