a-person-standing-on-a-beach-at-sunset ये अजनबी से रास्ते अब अपने लगते हैं। ये देवदार तने हुए हैं जैसे प्रहरी हो प्रेम के। बर्फीली हवाओं में सिमटा जिस्म तेरे ख्वाब देख कर, कश्मीरी सिगरी की गर्माहट पा रहा है। ऐसे में तुमसे गुजारिश है कि न मत कहना। वरना डल झील के शिकारों पर मोहब्बत तनहा कैसे बैठेगी। या कौन पियेगा कहवा । चांदनी रात में श्वेत निर्मल पहाड़ पे चांद क्यों देखेगा कोई। जब तुम न होगी साथ उसे चिढ़ाने को। एक बेदाग हुस्न लिए धड़कनों का गीत हो जाना तुमने सीखा है कहां से पत्थर को मोम बनाना। कोई जादू है, तो हो मगर अच्छा लगता है। तुम,तुम्हारा साथ,और ये एहसास बस सच्चा लगता है। ऐसा लगता है कि अब फिर से सुबह हो रही है। ऐसा लगता है कि फिर से शाम सुकून लाई है। सहमी सहमी सी उम्मीदों को हौंसला मिल रहा है। जैसे नन्हे परिंदे को नया घोंसला मिल रहा है। सुबह शबनम की बूंद में जैसे तारे समाए हों, सुदूर अंधेरे सागर में किसी कश्ती पे बैठे मछुआरे ने दिया जलाया हो, अपनी तनहाई को बांटने के लिए। जैसे ऑफिस की एक चाय बांट लेती है , तुम्हारे साथ मेरी खुशी। मैं भी बांटना चाहता हूँ तुमसे जिंदगी अपनी। घर की दहलीज पे दिखता है मुझसे शुभ्र कलश। और तेरे पांव में महावर भी। खनकते कंगनों की बीच तेरे पायलों का गीत है, और तेरी छोटी सी नाक नहीं आती बीच में, जब अधर एकसार हो रहे होते है। मेरी आंखों पे तेरा चेहरा और मेरे घर के खुले दरवाजे पे परदा झूल गया है।। ©निर्भय चौहान #SunSet katha(कथा) करम गोरखपुरिया