घूंघट में चाँद एक रोज वो पास आकर बोले , मैं वो हसीन चेहरा देख आया , आज मैं आसमाँ का गुरुर तोड़ आया , बड़ी खूबसूरत है उसकी आँखे , देखते ही दिल मै अपना वही छोड़ आया , तारों को क्यों होती है उससे जलन , आसमां पर बिखरता नूर उसका मैं देख आया , उठा जो घूँघट बादलों का , की आज मैं घूँघट में चाँद देख आया , बातें सुन मैं हैरान थी , ये कैसा कमाल कर आया , चाँद हमसे इतना दूर है , फिर कैसे ये घूंघट में चाँद देख आया , अचंभित देख मुझे वो मुस्कुरा कर बोले , देख मत ऐसे मुझे, मै उस चाँद की नहीं अपने चाँद की बात करता हूँ , अक्सर रहा करता था घूँघट में वो सोना, आज इत्तिफाकन उठाया उसने घूँघट, और मै धरा पर घूँघट में चाँद का दीदार कर आया | घूँघट में चाँद