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जल में शतदल तुल्य सरसते तुम घर रहते हम न तरसते द

जल में शतदल तुल्य सरसते

तुम घर रहते हम न तरसते

देखो दो-दो मेघ बरसते

मैं प्यासी की प्यासी आओ हो बनवासी।।”

           (यशोधरा से)

©अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज
  यशोधरा