शायद हम भी कुछ ऐसा सोच रहे हैं दुश्मनी निभाना हमारा जुनून नहीं है मगर करूं क्या मजबूरी में कर रहे हैं अच्छा हुआ उनसे मेरा मिलना न हुआ क्या करें अब ये सितम भी सह रहे हैं मिलना कर बिछड़ना आसान नहीं है ये सोच के हम गम के आंसू पी रहे हैं ©Prem Narayan Shrivastava #अंज़ाम ए दोस्ती