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गीत :- विवशता मेरे भोले पन का अपने , किए खूब उपय

गीत :- विवशता 

मेरे भोले पन का अपने , किए खूब उपयोग ।
किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ , सब अपने है लोग ।।
मेरे भोले पन का अपने ....

नहीं स्वार्थ की भाषा सीखी , कर दी हमने भूल ।
पल-पल हर पल चुभते हैं अब , हृदय हमारे शूल ।।
विवश हुआ हूँ आज उन्हीं का , बनने को उपभोग ।
मेरे भोलेपन का अपने....

आज विवशता मत पूछो तुम , रोने दो भरपूर ।
जिन रिश्तों की मद में खोया , वही हुए है चूर ।।
उनसे ही अब भिक्षा मागूँ , ऐसे दिखते योग ।
मेरे भोलेपन का अपने ....

सोंच रहा था मन में अपने , जीवन है सेवार्थ ।
लेकिन अब तो बदल गये है , इसके भी भावार्थ ।।
धर्म-कर्म के मानें क्या है , बनते कैसे जोग ।
मेरे भोलेपन का अपने ...

चीखो जितना तुम्हें चीखना , सब बैठे हैं मौन ।
कोई न पहचान है तेरी , बतला तू है कौन ।।
उसका कोई कैसे वारिश , जिसे गरीबी रोग ।
मेरे भोलेपन का अपने ....

आज समझ ले यही जगत है , ये रिश्तों का मोल ।
उठा तराजू निकल यहाँ से , और इन्हें ले तोल ।।
रख माया की गठरी तू भी , सब तेरे है लोग ।
मेरे भोलेपन का अपने .....

मेरे भोलेपन का अपने , किए खूब उपयोग ।
किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ , सब अपने ही लोग ।।

०६/०७/२०२३     -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- विवशता 

मेरे भोले पन का अपने , किए खूब उपयोग ।
किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ , सब अपने है लोग ।।
मेरे भोले पन का अपने ....

नहीं स्वार्थ की भाषा सीखी , कर दी हमने भूल ।
पल-पल हर पल चुभते हैं अब , हृदय हमारे शूल ।।
गीत :- विवशता 

मेरे भोले पन का अपने , किए खूब उपयोग ।
किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ , सब अपने है लोग ।।
मेरे भोले पन का अपने ....

नहीं स्वार्थ की भाषा सीखी , कर दी हमने भूल ।
पल-पल हर पल चुभते हैं अब , हृदय हमारे शूल ।।
विवश हुआ हूँ आज उन्हीं का , बनने को उपभोग ।
मेरे भोलेपन का अपने....

आज विवशता मत पूछो तुम , रोने दो भरपूर ।
जिन रिश्तों की मद में खोया , वही हुए है चूर ।।
उनसे ही अब भिक्षा मागूँ , ऐसे दिखते योग ।
मेरे भोलेपन का अपने ....

सोंच रहा था मन में अपने , जीवन है सेवार्थ ।
लेकिन अब तो बदल गये है , इसके भी भावार्थ ।।
धर्म-कर्म के मानें क्या है , बनते कैसे जोग ।
मेरे भोलेपन का अपने ...

चीखो जितना तुम्हें चीखना , सब बैठे हैं मौन ।
कोई न पहचान है तेरी , बतला तू है कौन ।।
उसका कोई कैसे वारिश , जिसे गरीबी रोग ।
मेरे भोलेपन का अपने ....

आज समझ ले यही जगत है , ये रिश्तों का मोल ।
उठा तराजू निकल यहाँ से , और इन्हें ले तोल ।।
रख माया की गठरी तू भी , सब तेरे है लोग ।
मेरे भोलेपन का अपने .....

मेरे भोलेपन का अपने , किए खूब उपयोग ।
किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ , सब अपने ही लोग ।।

०६/०७/२०२३     -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- विवशता 

मेरे भोले पन का अपने , किए खूब उपयोग ।
किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ , सब अपने है लोग ।।
मेरे भोले पन का अपने ....

नहीं स्वार्थ की भाषा सीखी , कर दी हमने भूल ।
पल-पल हर पल चुभते हैं अब , हृदय हमारे शूल ।।

गीत :- विवशता मेरे भोले पन का अपने , किए खूब उपयोग । किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ , सब अपने है लोग ।। मेरे भोले पन का अपने .... नहीं स्वार्थ की भाषा सीखी , कर दी हमने भूल । पल-पल हर पल चुभते हैं अब , हृदय हमारे शूल ।। #कविता