विनम्र हूँ कोमल हूँ पर कायर नहीं हूँ घुड़की से डर जाऊं ऐसा मैं शायर नहीं हूँ। सरल हूँ सहज़ हूँ पर लायर नहीं हूँ जो बोले, ओ लिखूँ ऐसा मैं शायर नहीं हूँ। सच को सच झूठ को झूठ लिखूँ तेरे गुलाबी लबों पर थिरकती सुबह की धूप लिखूँ तू जो चाहे सिर्फ़ ओ लिखूँ आशिक हूँ तेरा तेरे से हायर नहीं हूँ। रूठ जाऊं, छूट जाऊं तेरी बोलियों से टूट जाऊं समझ इतनी है, कि तू अपना है वर्ना आग का दरिया हूँ इक बूंद से बुझ जाऊं ऐसा मैं फायर नहीं हूँ। घुड़की से डर जाऊं ऐसा मैं शायर नहीं हूँ।