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शिशु काल मरा है जवानी मरी , दुख मेरे ही

शिशु काल मरा है जवानी मरी ,
           दुख मेरे ही हाथों से पाले गये
सब सुंदर एक से एक बने ,
          जैसे रूप के साँचे में ढाले गये
चुकता ही रहा चलता ही रहा , 
          कभी पाँवों को छोड़ न छाले गये
जितने भी अभाव रहे जग में ,
          सब मेरी ही झोली में डाले गये ।।
फिर मेरी व्यथा को सँवारा गया ,
         सपनों को मेरे दुतकारा गया
करुणा को दुराग्रह के कर से ,
          करवाल उठाकर मारा गया
सदभावना की कलियाँ झुलसीं ,
           रस रक्त विभूति का गारा गया 
अनुराग के गाँव में खून हुआ ,
          फिर वेदना को ललकारा गया ।।
#चीखती खामोशी
शिशु काल मरा है जवानी मरी ,
           दुख मेरे ही हाथों से पाले गये
सब सुंदर एक से एक बने ,
          जैसे रूप के साँचे में ढाले गये
चुकता ही रहा चलता ही रहा , 
          कभी पाँवों को छोड़ न छाले गये
जितने भी अभाव रहे जग में ,
          सब मेरी ही झोली में डाले गये ।।
फिर मेरी व्यथा को सँवारा गया ,
         सपनों को मेरे दुतकारा गया
करुणा को दुराग्रह के कर से ,
          करवाल उठाकर मारा गया
सदभावना की कलियाँ झुलसीं ,
           रस रक्त विभूति का गारा गया 
अनुराग के गाँव में खून हुआ ,
          फिर वेदना को ललकारा गया ।।
#चीखती खामोशी