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ajaypanday0093
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ajay panday

मैं भी लिखूँगा हस्ती अपनी जरा समय तो आने दो

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ajay panday

ज़िन्दगी के किसी दौर में जब तुम खुद को अकेले पाओ , तो खुद को चाँद समझ लेना जो अकेले ही स्याह रातों को उजियारीत करता है .... जब मंज़िल दूर लगे और पग पग पर भी ठोकर लगे , तो खुद को दीवार पर चढ़ती नन्ही चींटी समझ लेना जो सौ बार फिसलती है पर हिम्मत नही खोती है ...... जब राहों में काँटे ही काँटे हो और मुश्किलों के पत्थर राह रोकें हो , तो खुद को वो शिल्पकार समझ लेना जो पत्थर को तराशकर ईश्वर बना दे .... जब हो रहा हो मन हताश और विश्वास में न रहे कोई आस , तब खुद को बच्चा समझ लेना और हर मन को सच्चा समझ लेना ....

©ajay panday #Moon
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ajay panday

"क्या कहती हो ठहरो नारी!
संकल्प अश्रु-जल-से-अपने।
तुम दान कर चुकी पहले ही
जीवन के सोने-से सपने।

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में।
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में।

आँसू से भींगे अंचल पर
मन का सब कुछ रखना होगा-
तुमको अपनी स्मित रेखा से
यह संधिपत्र लिखना होगा।
#लज्जा

©ajay panday #महिला दिवस
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ajay panday

यह नियम है उद्यान में पककर गिरे पत्ते जहाँ ,
प्रकटित हुए पीछे उन्हीं के लहलहे पल्लव वहाँ।
पर हाय ! इस उद्यान का कुछ दूसरा ही हाल है,
पतझड़ कहें या सुखना,कायापलट या काल है?

चर्चा हमारी भी कभी संसार में सर्वत्र थी,
वह सद्गुणों की कीर्ति मानो एक और कलत्र थी।
इस दुर्दशा का स्वप्न में भी क्या हमें कुछ ध्यान था?
क्या इस पतन ही को हमारा वह अतुल उत्थान था?
#अतीत

©ajay panday #intejar
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ajay panday

हारना नहीं ख़ुद ही मैं मान जाता हूँ , जब भी किसी से रूठ जाता हूँ। कोई नही है मनाने वाला , ये बात मैं भूल जाता हूँ । खुद ही रोता हूँ रातों को , मैं खुद ही चुप हो जाता हूं । कोई नहीं है आँसू पोछने वाला , ये बात मैं भूल जाता हूँ ।

©ajay panday अकेला रोया हुआ इंसान सबसे मज़बूत होता है

#PoetInYou

अकेला रोया हुआ इंसान सबसे मज़बूत होता है #PoetInYou

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ajay panday

दुर्दैव , न जाने किस पथ पर
 खो गया मगध का स्वर्ण - काल , 
चाणक्य कहाँ थक कर बैठा , 
बुझ गयी कहाँ वह विप्र - ज्वाल ? #Waterfall&Stars
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ajay panday

बे - नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता 
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता 
सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें 
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता 
वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में 
जो है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता
 मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
 जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता
 वो ख्वाब जो बरसों से न चेहरा न बदन है
 वो ख्वाब हवाओं में बिखर क्यूँ नहीं जाता

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ajay panday

जन्मदर , मृत्यु दर , साक्षरता दर 
और जनसंख्या दर इन सबकी तरह 
जब निकाली जाएगी घर वापसी की दर 
उन बच्चों की , जो पढ़ने निकले थे 
दूसरे शहर तब पता चलेगा 
ये कविता नहीं त्रासदी है ..

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ajay panday

कुछ सपनों का पुनर्निर्माण हो रहा है 
इन दिनों , घर बैठे ।

 कई रिश्तों का पुनर्वास हो रहा है बातें कम ,
 विचारों में ठहराव हो रहा है इन दिनों , घर बैठे । 

दूरियाँ . . . अब रात -
दिन का फ़र्क कहाँ महसूस कर पा रही हैं
 नज़दीकियों पर पुनर्विचार हो रहा है इन दिनों , घर बैठे ।
#हिन्दीनामा हिन्दीनामा

हिन्दीनामा

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ajay panday

तुमसे दूरियां ही मुकम्मल रहे तो आबाद हो इश्क़ मेरा
नजदीकियाँ तो अब बस शराब से ही बेहतर है अधूरा इश्क़

अधूरा इश्क़ #विचार

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ajay panday

पेड़ जितना बढ़ेगा पत्ते उतनी ऊँचाई से गिरेंगे ।
 पेड़ का बढ़ना पत्ते का गिरना सबकुछ तय है । 
ऐसे ही जैसे दुख तय है करुणा तय है , विषाद तय है ।
 बुद्ध फिर आयेंगे और समेट नहीं पाएंगे न ही दुख , 
न ही करुणा , न ही विषाद ।
पृथ्वी चुपचाप सबकुछ देखती है 
और अंततः हर दुख , करुणा , विषाद , और पत्ते समेट लेती है खुद में ।
#हिंदीनामा दुनिया मे कुछ भी स्थिर नही

दुनिया मे कुछ भी स्थिर नही #हिंदीनामा

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