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खोल उन पन्नों को जहां प्रेरणाओं की बातें हुईं थीं।

खोल उन पन्नों को
जहां प्रेरणाओं की बातें हुईं थीं।
खोल उन पन्नों को,
जहां व्यथित हृदय की व्यथाएं हुई थी।
पढ़ लें उन पन्नों को भी,
जहां व्यक्त मनोदशाएं हुईं थीं।

अब कर आलोचना तू स्वयं की,
किस पथ पर चल रही तू पथिक,
हौसले अब भी तुम में,
फासले को दूर कर।
निभा लें इस मनमीत के संग प्रीत को,
अनंत, अविभाज्य है जो।
सर्वज्ञ तू कहां? 
अल्पज्ञ है, अज्ञान है,
अबोध हैं, अंजान है।
जोड़ मुझसे नाते तू,
ये पहला प्रेम प्रतिपल तेरे साथ हैं।
अब खोल पलके अपनी,
सोच किस्से अपनी,
भूल इन लम्हों को अपनी दिवानगी लिख,
जोड़ कुछ उन पन्नों को जिसमें अपनी कहानी लिख।।

©Nandini shukla
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