अंजानी धुंध में लिपटी लिबास को तरसती है सखी दुल्हन आज भी विश्वास को तरसती है एक तो घर एकदम पराया लगे बीहड़ का साया दूसरा भरोसे का बेदर्दी से कत्ल करता छलावा बिल्कुल अकेली हो जाती है और रहती है दबाव में भी फिर भी बखूबी संभालती है खुद को और हालात को भी बबली गुर्जर ©Babli Gurjar धुंध