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अंजानी धुंध में लिपटी लिबास को तरसती है सखी दुल्हन

अंजानी धुंध में लिपटी लिबास को तरसती है
सखी दुल्हन आज भी विश्वास को तरसती है 

एक तो घर एकदम पराया लगे बीहड़ का साया
दूसरा भरोसे का बेदर्दी से कत्ल करता छलावा 

बिल्कुल अकेली हो जाती है और रहती है दबाव में भी
फिर भी बखूबी संभालती है खुद को और हालात को भी
बबली गुर्जर

©Babli Gurjar धुंध Sethi Ji Ravi Ranjan Kumar Kausik Mili Saha R. Ojha Ashutosh Mishra Rama Maheshwari
अंजानी धुंध में लिपटी लिबास को तरसती है
सखी दुल्हन आज भी विश्वास को तरसती है 

एक तो घर एकदम पराया लगे बीहड़ का साया
दूसरा भरोसे का बेदर्दी से कत्ल करता छलावा 

बिल्कुल अकेली हो जाती है और रहती है दबाव में भी
फिर भी बखूबी संभालती है खुद को और हालात को भी
बबली गुर्जर

©Babli Gurjar धुंध Sethi Ji Ravi Ranjan Kumar Kausik Mili Saha R. Ojha Ashutosh Mishra Rama Maheshwari