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कभी संगदील है आदमी कभी हमदिल है आदमी अपनी ही बिसात

कभी संगदील है आदमी
कभी हमदिल है आदमी
अपनी ही बिसात मे बिछा
खुद मे ही मस्त है आदमी..
कभी खुद से तंग है आदमी
कभी खुद मे ही मलंग है आदमी
जाने किन ख्यालों मे उलझा 
खुद मे ही गुम है आदमी..
कभी बादलों का परिंदा है आदमी
कभी कटी पतंग सा है आदमी
अपनी ही बातों का
बस अफसाना है आदमी....

©जागृती_मंच(जय पाठक)
  #आदमी