किसी हरी घास पर बैठा , विचार मन में लाजवाब देखता हूं। जाने क्या है तकदीर में मेरे, मैं खुली आंखों से ख्वाब देखता हूं।। ✍️ दीपेंद्र कुमार NiyaaKa____❤