White स्मार्टफोन की कैद खुद से ज़्यादा संभालकर रखता हूँ मोबाइल अपना, क्योंकि हर रिश्ता अब इसी में बसा है सपना। वक्त के साथ बदल गए मुलाकातों के मायने, अब स्क्रीन पर सिमट गए हैं चाहतों के आईने। संदेशों में छुपी है माँ की ममता की बात, वीडियो कॉल में मिलती है पिता की सौगात। दोस्तों के ठहाके अब वॉइस नोट में सजे हैं, सारे रिश्ते जैसे डिजिटल दायरे में बंधे हैं। न गली के नुक्कड़, न चौपाल की कहानियाँ, बस ऐप्स में सिमट गई हैं सारी रवायतें पुरानियाँ। खुशियाँ और ग़म अब इमोजी से बयाँ होते हैं, दिल के जज्बात भी टेक्स्ट में दबे-छुपे से होते हैं। काश लौट पाती वो कागज़ की चिट्ठियाँ, जहाँ भावनाएँ चलती थीं हवाओं की लहरियाँ। पर अब यही मोबाइल है रिश्ता निभाने का सहारा, इसके बिना तो ज़िंदगी लगे सूना और बंजारा। समय का तकाज़ा है, इसे अपना लिया है, दिल से रिश्तों का नाता इसमें जमा लिया है। पर कहीं ना कहीं दिल में ये सवाल उठता है, क्या वाकई हर रिश्ता इसी डिवाइस में सच्चा लगता है? ©Ashok Verma "Hamdard" #स्मार्ट फोन की कैद