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✍️ भावनाओं को भवनाएं ही रहने दिया जाए.. दुर्भावनाओ

✍️
भावनाओं को भवनाएं ही रहने दिया जाए..
दुर्भावनाओं को दिलों से दूर किया जाए..

बचपन मे बहुत खिलखिलाती हंसी निकलती थी..
बच्चों से उनका बचपन ना छिना जाए..

बहुत देर कर दी पुराने ख्वाबों में जाने से..
सारी यादों को अपने बातों में शुमार किया जाए..

मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर करना..
अब हिंदू मुस्लिम को भाई चारे के साथ रहने दिया जाए..

कृष्ण कान्त मिश्र भावनाओं को भावनायें ही रहने दिया जाए..
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भावनाओं को भवनाएं ही रहने दिया जाए..
दुर्भावनाओं को दिलों से दूर किया जाए..

बचपन मे बहुत खिलखिलाती हंसी निकलती थी..
बच्चों से उनका बचपन ना छिना जाए..

बहुत देर कर दी पुराने ख्वाबों में जाने से..
सारी यादों को अपने बातों में शुमार किया जाए..

मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर करना..
अब हिंदू मुस्लिम को भाई चारे के साथ रहने दिया जाए..

कृष्ण कान्त मिश्र भावनाओं को भावनायें ही रहने दिया जाए..

भावनाओं को भावनायें ही रहने दिया जाए.. #poem