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सोचा था तारों तले दुनिया बसाए, मिट्टी का घर था हम

सोचा था तारों तले दुनिया बसाए,
मिट्टी का घर था हम कितना सजाए!

सावन की बारिश बेरहम आयी,
उड़ते हवाओँ में पत्तो के छप्परों को कैसे बचाये!! #मुसाफ़िर की कलम!!
सोचा था तारों तले दुनिया बसाए,
मिट्टी का घर था हम कितना सजाए!

सावन की बारिश बेरहम आयी,
उड़ते हवाओँ में पत्तो के छप्परों को कैसे बचाये!! #मुसाफ़िर की कलम!!