पोली पुँजीयों से शादियाँ एक मोटी अमीर मुट्ठी ने, अन्य चंद मुट्ठियों को, अपनी गोलमोल मुट्ठी में, जमा लिया, नचा लिया ! एक छोटे रिचार्ज से.., खुदरा व्यापार से, रसायन भंडार से, ऊर्जा विस्तार से, खेल करार से.., कब कैसे ये मुट्ठी, इतनी मोटी हो गयी, पता ही नही चला। बहरहाल- वो इतर चंद मुट्ठियां, मुझे; बड़ी लाचार, बड़ी लालची, बड़ी नकली, बड़ी कृत्रिम, विभाजित, विभक्त, खंडित, भिन्न भिन्न सी नजर आई। परिवेश में खुशी कम, हँसी ज्यादा नजर आई। एक बार फिर, भक्तिवादी, समाजवादी, साम्यवादी सोच; पूंजीवादी में धँसी नजर आई। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि ©Anand Dadhich #kaviananddadhich #poetananddadhich #weather_today