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मैं अपने हर बिखराव से जज्बातों की नई ज़मीन तोरूँगी

मैं अपने हर बिखराव से जज्बातों की नई ज़मीन तोरूँगी
    कोई चाहें मुझे कितना भी बिखरा दे

मुझे किसी की बेबफाई क्या नाउम्मीद करेंगी
  चाहें कोई मुझे कितना भी डरा दे

न मैं अब तुझसे कोई शिकवा करूँगी, न ही शिकायत,
तकदीर और क़िस्मत की लकीरों पे ही भरोसा करूँगी

मैंने तो तुझे खुदा मान कर तेरी ही इबादत करना चाहा था हमेशा..

पर मेरी चाहत में ही कमी थी शायद जो
तुझे मेरी मुहब्बत  कभी दिखी ही नहीं
अब तेरे नज़दीक जाने की न कभी कोशिश करूँगी..!!

©Rishika Srivastava "Rishnit"
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