सूर्य-सम सत्य से,आँखें मूँदी नही जाती, किन्तु प्रत्यक्ष साक्षात्कार से डर जाती हूँ, इसलिए औरों के लिए नहीं,अपनी खातिर ही अनचाहे सच को, कई बार अनदेखा कर जाती हूँ। श्रम-संयम से संभालती स्वयं को, हर बार एक ही बात याद दिलाती हूँ, कुछ मोहक सत्य,कुछ वांछनीय प्रपंच, संसार और गृहस्थी हमारी, है एकअद्भुत रंगमंच। निभा रहे,भूमिका सब अपनी, अभिनय के हैं विभिन्न रंग, क्यूंकि जग का,जीवन का, है यह अनिवार्य अभिन्न अंग। सूर्य-सम सत्य से,आँखें मूँदी नही जाती, किन्तु प्रत्यक्ष साक्षात्कार से डर जाती हूँ, इसलिए औरों के लिए नहीं, अपनी खातिर ही, अनचाहे सच को,कई बार, अनदेखा कर जाती हूँ। #yqdidi#love#truth#relation#grihasthi#hindi#poetry