देख रही हूँ राह पिया की, रहते वह परदेश । भेज रही हूँ नेह उन्हीं को, लिखकर मैं संदेश १ ।। बिन पानी के सूखी फसले, करती बस अरदास । तुम ही बोलों गिरधर कुछ तो टूटी मन की आस २ ।। मैं विपदा की मारी नारी, क्या मेरा संसार । जिनसे रिश्ता जन्म जन्म का करें प्रीत व्यापार ३ ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR देख रही हूँ राह पिया की, रहते वह परदेश । भेज रही हूँ नेह उन्हीं को, लिखकर मैं संदेश १ ।। बिन पानी के सूखी फसले, करती बस अरदास । तुम ही बोलों गिरधर कुछ तो